শ্রীরামচন্দ্র কৃপালু

উইকিপিডিয়া, মুক্ত বিশ্বকোষ থেকে

" শ্রী রামচন্দ্র কৃপালু " বা "শ্রীরাম স্তুতি" হল গোস্বামী তুলসীদাস রচিত বিনয় পত্রিকার অন্তর্গত একটি স্তুতি। এটি ষোড়শ শতাব্দীতে সংস্কৃতঅবধি ভাষার মিশ্রণে রচিত হয়েছিল। অত্র প্রার্থনায় শ্রী রাম ও তাঁর গুণাবলী সর্বোত্তমভাবে মহিমান্বিত হয়েছে।

মূল সংস্করণ:

অবধি ও সংস্কৃত

॥ श्रीरामचन्द्र कृपालु ॥

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं । नव कञ्ज लोचन कञ्ज मुख कर कञ्ज पद कञ्जारुणं ॥१॥ कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं । पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥२॥ भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं । रघुनन्द आनन्द कन्द कोसल चंद्र दशरथ नन्दनं ॥३॥ सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणं । आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥ इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं । मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥५॥ मनु जाहि राचेयु मिलहि सो वरु सहज सुन्दर सांवरो । करुणा निधान सुजान शीलु स्नेह जानत रावरो ॥६॥ एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥

         ॥सोरठा॥

जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे।

          ||चौपाई||

मो सम दीन न दीन-हित , तुम समान रघुवीर । अस विचार रघुवंश मणि, हरहु विषम भव वीर ।।

कामिही नारि पियारी जिमि , लोभिहि प्रिय जिमि दाम । तिमि रघुनाथ निरंतरय , प्रिय लागेहू मोहि राम ।।

अर्थ न धर्म न काम रुचि,‌ गति न चाहु निर्वाण । जन्म जन्म रचि राम पद, यह वरदान न आन ।।

विनती कर मोहि मुनि नार सिर, कहीं-करी जोर बहोर । चरण सरोरहु नाथ जिमी, कबहु बजई भाति मोर ।।

श्रवण सुजस सुनि आयहु, प्रभु भंजन भव वीर । त्राहि-त्राहि आरत हरण शरण सुखद रघुवीर ।।

जिन पायन के पादुका, भरत रहे मन लाई । तेहीं पद आग विलोकि हऊ, इन नैनन अब जाहि ।।

काह कही छवि आपकी, मेल विरजेऊ नाथ । तुलसी मस्तक तव नवे, धनुष बाण ल्यो हाथ ।।

कृत मुरली कृत चंद्रिका, कृत गोपियन के संग । अपने जन के कारण, कृष्ण भय रघुनाथ ।।

लाल देह लाली लसे, अरू धरि लाल लंगूर । बज्र देह दानव दलन, जय जय कपि सूर ।।

जय जय राजा राम की, जय लक्ष्मण बलवान ।

जय कपीस सुग्रीव की, जय अंगद हनुमान ।। जय जय कागभुसुंडि की , जय गिरी उमा महेश । जय ऋषि भारद्वाज की, जय तुलसी अवधेश ।।

बेनी सी पावन परम, देमी सी फल चारु । स्वर्ग रसेनी हरि कथा, पाप निवारण हार ।।

राम नगरिया राम की, बसे गंग के तीर । अटल राज महाराज की, चौकी हनुमान वीर ।।

राम नाम के लेत ही, सकल पाप कट जाए । जैसे रवि के उदय से, अंधकार मिट जाए ।।

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार । बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ।।

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान । कहत अयोध्या दास तवे देहु अभेय वरदान ।।

नहीं विद्या नहीं बाहुबल, नहीं कंचन कों धाम । मो सों पतित अपंग की, तुम पति राखहुँ राम ।।

एक धरी आधी धरी, और आधि की आधि । तुलसी संगत साधु की, हारई कोटि अपराध ।।

सियावर रामचन्द्र जी की जय ।॥

বাংলা লিপ্যন্তর

॥ শ্রীরামচন্দ্র কৃপালু ॥

শ্রীরামচন্দ্র কৃপালু ভজমন হরণভবভয়দারুণং।
নবকঞ্জলোচন কঞ্জমুখ করকঞ্জ পদকঞ্জারুণম্। ।।১।।
কন্দর্প অগণিত অমিত ছবি নবনীলনীরদসুন্দরং।
পটপিতমানহু তাড়িত রুচিশুচি নৌমিজনকসুতাবরম্। ।।২।।
ভজদীনবন্ধু দীনেশ দানবদৈত্যবংশনিকন্দনং।
রঘুনন্দ আনন্দকন্দ কোশলচন্দ্র দশরথনন্দনম্। ।।৩।।
শ্রীমুকুটকুণ্ডল তিলকচারু উদারুঽঙ্গবিভূষণং।
আজানুভুজ শরচাপধর সংগ্রামজিতখরদুষণম্। ।।৪।।
ইতি বদতি তুলসীদাস শঙ্করশেষমুনিমনরঞ্জনং।
মমঃরু দয়াকঞ্জনিবাসকুরু কামাদিখলদলগঞ্জনম্। ।।৫।।

বাংলা অনুবাদ

হে মন, কৃপালু শ্রীরামচন্দ্রজীর ভজনা কর। তিনি সংসারের জন্ম-মৃত্যু রূপী দারুণ ভয় হরণকারী।
তার নেত্র নব-বিকশিত কমলের অনুরূপ। তার মুখ-হস্ত ও চরণও লালকমলসদৃশ ।।১॥
অগণিত কামদেবও তার সৌন্দর্যছটার সমান নয়। তার শরীর নবীন নীল-সজল মেঘের মতোই সুন্দরবর্ণ।
তার পীতাম্বর মেঘরূপ শরীর যেন বিদ্যুতের মতোই চমকিত হচ্ছে। এমত পাবনরূপ জানকীপতি শ্রীরামজীকে আমি নমস্কার করি ।।২॥
হে মন ! দীনের বন্ধু, সূর্যের সমান তেজস্বী, দানব ও দৈত্য বংশের সমূল বিনাশকারী,
আনন্দকন্দ কোশল-দেশরূপী আকাশে নির্মল চন্দ্রসম দশরথনন্দন শ্রীরামের ভজনা কর ॥৩॥
যার মস্তকে রত্নজড়িত মুকুট, কর্ণে কুণ্ডল, ললাটে তিলক, এবং প্রতি অঙ্গে আভূষণ সুশোভিত হচ্ছে।
যার বাহু জানু পর্যন্ত প্রসারিত (আজানুভুজ)। যিনি ধনুক-বাণ গ্রহণ করেছিলেন এবং খর-দূষণকে জয় করেছিলেন ॥৪॥
যিনি শিব, শেষ ও মুনিগণের মন প্রসন্নকারী এবং কাম, ক্রোধ, লোভাদি শত্রুদের নাশকারী,
তুলসিদাস প্রার্থনা করেন যে 'সেই শ্রীরঘুনাথজী আমার হৃদয় কমলে সদা নিবাস করুন।'।।৫॥
যাতে তোমার মন অনুরক্ত হয়ে গেছে, সেই স্বভাব সুন্দর শ্যামলবর (শ্রীরামচন্দ্র) তোমার লভ্য হবে।
তিনি দয়ার খনি এবং সুজান (সর্বজ্ঞ), তোমার শীল ও স্নেহ সম্পর্কে তিনি জানেন ।।৬॥
এই প্রকার শ্রীগৌরিজীর আশীর্বাদ শ্রবণ করে জানকীজী সমেত সকল সখী হৃদয়ভরে হর্ষিত হলেন।
তুলসীদাস বলছেন, বার-বার ভবানীপূজা সমাপ্ত করে সীতা প্রসন্ন মনে রাজমহলে ফিরে চললেন ॥৭॥
॥সোরঠা॥
গৌরিজীর আশ্বাসবাণী শুনে সীতাদেবীর হৃদয়ে যে আনন্দ হয়েছিলো তা ভাষায় বর্ণনা করা যায় না। সুন্দর মঙ্গল হেতু তার বাম অঙ্গ কম্পিত হতে লাগলো।

জনপ্রিয় সংস্কৃতিতে[সম্পাদনা]

এই ভজনটি লতা মঙ্গেশকর,অনুপ জালোটা,জগজিৎ সিং সহ বহু শিল্পী দ্বারা গাওয়া হয়েছে।

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